Posts

Showing posts from May, 2017

एक शाम

एक शाम एक शाम थकी सी खड़ी हैं मेरे दरवाजे पर अपनी गुलाबी साड़ी सवारें आँचल में खेलता एक सांवला सा बादल शिशु लिपटा गुलाबी कपड़ों में अंजुलि पसारे उड़ते बगुलों का झुण्ड उसकी दाँतो की लड़ी सी उसकी हँसी कोई कैसे बिसारे कुछ ऐसे ही पल थे जब हम तुम मिले थे उस शाम नदी के किनारे