एक शाम

एक शाम

एक शाम थकी सी खड़ी हैं मेरे दरवाजे पर
अपनी गुलाबी साड़ी सवारें
आँचल में खेलता एक सांवला सा बादल शिशु
लिपटा गुलाबी कपड़ों में अंजुलि पसारे
उड़ते बगुलों का झुण्ड उसकी दाँतो की लड़ी सी
उसकी हँसी कोई कैसे बिसारे
कुछ ऐसे ही पल थे जब हम तुम मिले थे
उस शाम नदी के किनारे

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