बिहारी लाल और गागर में सागर


बिहारी लाल हिंदी साहित्य के जाने माने कवि थे। उनके बारे में कहा जाता था कि  वो अपनी दोहो  के माध्यम से गागर में सागर भरने में कुशल थे। यहाँ गागर में सागर से तात्पर्य है कि  वो एक ही दोहे में पूरी कहानी कहने में समर्थ थे। उनके दोहो का संकलन "बिहारी सतसई" के नाम से विख्यात है। जिसके बारे में कहा जाता है। 


सतसैया के दोहे , ज्यो नाविक के तीर। 
देखन में छोटे लगे,घाव करे गंभीर।। 



"बिहारी सतसई" एक दोहा मैं यहाँ उदाहरण के रूप दे रहा हूँ।

"कहत नटत रीझत खीजत मिलत खिलत लजियात। 
 भरे भवन  में करत है  नैनन ही से बात।

यहाँ नायक और नायिका किसी उत्सव में मिलते हैं। पूरा भवन लोगो से भरा हैं किन्तु नायक और नायिका आँखों  ही आँखों  से बात कर लेते है।  नायिका पहले नायक की बात मान लेती फिर मना  कर देती हैं।  फिर वो रीझती और गुस्सा करती हैं। अंत में दोनों की आँखे मिलती और नायिका का खिल उठती और शर्मा जाती है।  इस तरह वो दोनों लोगो से भरे भवन में भी केवल आँखों  के द्वारा बात करने में सक्षम हैं।

एक और दोहा देखिए

बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय ।
सौंह करे, भौंहनु हंसे दैन कहे, नटि जाय ।।


इस दोहे में भगवान् कृष्ण और गोपियो के विनोद के कथा हैं।  कृष्ण की बातो का आनंद लेने के लिए गोपियो ने कृष्ण की मुरली  छुपा दी  हैं। जब कृष्ण उनसे पूछते हैं तो वो लोग इनकार कर देती हैं।  वो लोग कसम खा कर कहती हैं कि  उन्होंने मुरली नहीं ली हैं पर उनकी आँख की भोएं कुछ अलग ही बात कहती हैं यानी उनकी आखो में एक शरारत छुपी हुई हैं जिसे कृष्ण भाँप  लेते हैं।  गोपिकाये उनकी मुरली वापस  देने की बात तो करती है पर अंत में मुकर जाती हैं।  कुछ विद्वान् गोपिकाओं की जगह राथा  को लेकर इस प्रसंग का वर्णन करते हैं।

एक और दोहा काबिलेगौर हैं

मेरी भव-बाधा हरौ राधा नागरि सोई।
जा तन की झाईं परै श्यामु हरित दुति होई।। 


इस दोहे के दो अर्थ हैं

१. मेरी दुःख (सांसारिक कष्ट ) वही चतुर राधा करे जिनको देखकर भगवान् श्री कृष्ण  प्रसन्न हो जाते हैं

२. मेरी दुःख (सांसारिक कष्ट ) वही चतुर राधा करे जिनके तन की छाया पड़ने पर भगवान् श्री कृष्ण का रंग हरा हो जाता हैं। यहाँ ये बात ध्यान देने योग्य है कि  राधा गोरी(सुवर्ण) है और कृष्ण नीले रंग के हैं।  इन दोनों रंग मिलकर हरा रंग बनाते हैं।


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